शनिवार, 17 दिसंबर 2011

कैसे करें यकीं कोई तेरे प्यार का ,
था अजीब सा सलीका इजहारे-प्यार का

ना थी गर्मजोशी ना अपनेपन का रंग था ,
तेरे इस अदा से सारा जहाँ दंग था
क्या करूं मै तेरे इस सरोकार का ...........!

हमने बिछा दी पलकें तेरी राह में ,
बसा रखी है तेरे सूरत अपने ख्वाब-गाह में ,
मिलेगा सिला तुमको इंतजार का .........!

दुश्मन बना जमाना ,हमें मंजूर था ,
तेरी चाहत का चढ़ा ,आँखों में सरूर था
पर आया ना इशारा तेरे इकरार का .......!

मंजिल पर पहुंचना , सबका नसीब हो ,
जो दूर हो किसी का ,उसके करीब हो ,
हो 'कमलेश 'नाज़ुक धागा तेरे ऐतबार का .......!

2 टिप्पणियाँ:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत खूब,.....सुंदर रचना,...

मेरे पोस्ट के लिए "काव्यान्जलि" मे click करे

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर रचना,....समर्थक बने तो खुशी होगी

"काव्यान्जलि"--नई पोस्ट--"बेटी और पेड़"--में click करे