कैसे करें यकीं कोई तेरे प्यार का ,
था अजीब सा सलीका इजहारे-प्यार का ।
ना थी गर्मजोशी ना अपनेपन का रंग था ,
तेरे इस अदा से सारा जहाँ दंग था ।
क्या करूं मै तेरे इस सरोकार का ...........!
हमने बिछा दी पलकें तेरी राह में ,
बसा रखी है तेरे सूरत अपने ख्वाब-गाह में ,
मिलेगा सिला तुमको इंतजार का .........!
दुश्मन बना जमाना ,हमें मंजूर था ,
तेरी चाहत का चढ़ा ,आँखों में सरूर था ।
पर आया ना इशारा तेरे इकरार का .......!
मंजिल पर पहुंचना , सबका नसीब हो ,
जो दूर हो किसी का ,उसके करीब हो ,
न हो 'कमलेश 'नाज़ुक धागा तेरे ऐतबार का .......!
शनिवार, 17 दिसंबर 2011
प्रस्तुतकर्ता कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 पर 10:15 pm
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2 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब,.....सुंदर रचना,...
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बहुत सुंदर रचना,....समर्थक बने तो खुशी होगी
"काव्यान्जलि"--नई पोस्ट--"बेटी और पेड़"--में click करे
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