भरोसा हम करे किसपर भरोसा टूट जाता है
ज़रा-सी बात पर हमसे ज़माना रूठ जाता है
किसी भी अजनबी को हम फरिश्ता ही समझते हैं
वो आता है ठहरता है हमीं को लूट जाता है
कसम खाता है वो निसदिन हमेशा साथ देने की
उसी के बाद उसका साथ हमसे छूट जाता है
दुआएँ भी निकलती है कभी खाली नहीं जातीं
जिसे मिलती नहीं उसका मुकद्दर फूट जाता है
फ़रेबों की ज़मीनों पर यहाँ पौधे पनपते हैं
वहाँ दामन बचाने में पसीना छूट जाता है
हमारा दिल धड़कता है कभी थकता नहीं ,
किसी की बात से लेकिन ज़रा-सा टूट जाता है
शनिवार, 3 अक्टूबर 2009
भरोसा हम करे किसपर..!!
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